हड़हुआ, भारत: प्राचीन शहर वाराणसी से सटे इस उनींदे गांव की 58 वर्षीया श्रीमती इरावती देवी अपने घर को छाया देते बेल के पेड़ के नीचे गर्व से खड़ी हैं। वे ठेले पर नूडल और समोसे बेचती हैं, जिनके जूठन की खोज करती बकरियाँ उनके ठेले के इर्दगिर्द घूमती नज़र आती हैं। वे कहती हैं, “जब हम हड़हुआ में आकर बसे थे, तब बांस के खंभों से साड़ियां बांधकर अपने लिए रहने की जगह बनाते थे, जब तक कि हम दीवारें बनाने के काबिल नहीं हो गए”। एक के बाद एक छोटे कर्ज़ (एक बार में औसतन 290 डॉलर) के बूते धीरे-धीरे वे अस्थायी घेरों की जगह ईंट की दीवारें बनाने में सफल हुईं। इसके बाद उन्होंने कारोबार शुरू करने के लिए ठेलागाड़ी, बर्तन आदि खरीदे। आज ये चीज़ें ही उनके परिवार को सहारा दे रही हैं।
श्रीमती इरावती ने लघु ऋणों के बूते खुद को और अपने सात बच्चों को गरीबी से जिस तरह उबारा, वैसी कहानी भारत भर के लाखों लोग सुना सकते हैं। लघु ऋण लेने वालों को, जिनमें ग्रामीण महिलाओं कि संख्या ज्यादा है, मिले ऋण का अनुपात जून 2012 से जून 2018 के बीच पिछले छह वर्षों में 2 अरब डॉलर से नौ गुना बढ़कर 20 अरब डॉलर हो गया है। हाशिये पर पड़े लाखों परिवारों ने इन ऋणों से कारोबार शुरू किए, उन्हें फैलाया, आपात स्थितियों में जरूरी चीज़ें खरीदीं, और अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया।
छोटे ऋणों के कारण, इरावती देवी अपने घर में सुधार करने और एक छोटा व्यवसाय शुरू करने में कामयाब हुई।
पिछले एक दशक में, आइएफसी ने इक्विटी और डेट में 56.4 करोड़ डॉलर निवेश करके भारत में माइक्रो-फाइनांस का बाज़ार बनाने में मदद की है। इस राशि में उत्कर्ष में निवेश किए गए 50 लाख डॉलर शामिल हैं। उत्कर्ष के 400 माइक्रो-बैंकिंग कार्यालय आज श्रीमती इरावती सहित 17 लाख कर्जदारों की सेवा कर रहें हैं। आज आइएफसी का पैसा एक दर्जन से ज्यादा वित्तीय संस्थाओं में लगा है, जो कुलमिलाकर देश में लघु ऋण देने वाली 50 प्रतिशत संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं और करीब 7 करोड़ लोगो की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सेवा करती हैं।
आंकड़े अगर प्रभावशाली हैं, तो कहानियां प्रेरणादायक हैं। इसकी एक मिसाल यह है कि हाल में एक दिन उत्कर्ष के सीईओ श्री गोविन्द सिंह इरावती के दरवाजे पर दिखे। उत्कर्ष की नौवीं वर्षगांठ पर उन्होंने अपना कुछ समय हड़हुआ गांव में बिताया, जहां अपने 11 कर्मचारियों के साथ मिलकर उन्होंने कंपनी की ओर से पहले ऋण बांटे। 2010 में जब उत्कर्ष का दफ्तर धूलभरे एक कमरे में तीन कुर्सियों से चलता था, तब इरावती इसके पहले ग्राहकों में थीं। अपने सबसे छोटे बेटे के साथ खड़ी श्रीमती इरावती ने श्री सिंह को धन्यवाद दिया, “आपके पैसे के लिए धन्यवाद”।
श्री सिंह ने उन्हें जवाब दिया, “ये मेरे नहीं, आपके ही पैसे हैं।” उन्होंने उन्हें धन्यवाद दिया कि कर्ज़ के पैसे से उन्होंने अपने परिवार की मदद की।
विकासशील क्षेत्र के प्रशासन में सुधार
उत्कर्ष की स्थापना के समय भारत का माइक्रो-फाइनांस उद्योग आत्मविश्वास के संकट से जूझ रहा था। 2010 में आंध्र प्रदेश में जब ऋण भुगतान बंद था, केंद्रीय बैंक ने ऐसे नियम-प्रतिबंध लागू कर दिए कि यह उद्योग वास्तव में ठप ही हो गया। 2011 में माइक्रो-फाइनांस संस्थाओं को 2.4 अरब डॉलर उधार मिले थे, जो 2012 में घटकर मात्र 83.5 लाख डॉलर रह गए। इसी दौरान आइएफसी ने इस सेक्टर का भविष्य की दृष्टि से जायजा लिया। बेहतर प्रबंधन वाली उत्कर्ष समेत कई माइक्रो-फाइनांस संस्थाओं में निवेश करने और उन्हें सलाहकारों से समर्थन उपलब्ध कराने की वजह से आइएफसी के कारण इस बाज़ार के खिलाड़ियों का आत्मविश्वास बहाल हुआ।
श्री सिंह कहते हैं, “संकट के दौरान आइएफसी ने न केवल हमें सहारा दिया बल्कि ऐसी व्यवस्थाएं बनाईं जिनका उपयोग माइक्रो-फाइनांस संस्थाएं कर सकती थीं।”
इस उभरते सेक्टर के लिए आइएफसी ने एक सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह दिया कि जोखिम को संभालने का एक फ्रेमवर्क तैयार कर दिया। इसने कर्ज़ लेने वालों के कल्याण पर ज़ोर दिया और ऐसे नए सुरक्षात्मक उपाय तैयार किए कि ग्राहक अपने कर्ज़ की शर्तों को समझ सकें। श्री सिंह कहते हैं कि इसके पहले “माइक्रो-फाइनांस संस्थाओं के जोखिमों से बचाव के उपाय करने पर शायद ही ध्यान दिया जाता था”।
आइएफसी ने विश्व बैंक के साथ मिलकर ऐसी आचार संहिता तैयार की जिसने उत्तरदायी वित्त व्यवस्था के लिए साझा फ्रेमवर्क निश्चित कर दिया। 90 प्रतिशत माइक्रो-फाइनांस सेक्टर ने इन्हें अपना लिया। श्री सिंह बताते हैं, “ये दोनों बहुत महत्वपूर्ण प्रोडक्ट हैं... जिन्होंने रेगुलेटरों और सरकारी एजेंसियों में विश्वास पैदा किया। माइक्रो-फाइनांस उद्योग के लिए हालात बेहतर हुए”।
इस तरह का समर्थन मिलने के बाद उत्कर्ष ने स्टाफ की भर्ती की और उन्हें ट्रेनिंग दी, बैंक की नई शाखाएं खोलीं, और महिलाओं की जरूरतों को पूरा करने वाले बेहतर वित्तीय प्रोडक्ट तैयार किए।
चित्र: पुराणपूल गांव में महिलाओं का एक समूह एक मुफ्त वित्तीय शिक्षा कार्यशाला में भाग लेते हुए।
समुदायों को मजबूती
गंगा नदी के किनारे बसी वाराणसी के बाज़ार हाथ से बुने कालीनों से लेकर चमेली के फूलों कि मालाएं बेचने वालों तथा ऑटोरिक्शा ड्राइवरों के शोर, मवेशियों कि धकमपेल के कारण गूँजते रहते हैं। परिवारों द्वारा चलाए जा रहे ठेलों-दुकानों से पकौड़ों, दालों, मसालों की गंध तैरती रहती है।
भारत जैसी अर्थव्यवस्था के लिए, जहां 80 प्रतिशत लोगों को अनौपचारिक सेक्टर में रोजगार हासिल है, माइक्रो-फाइनांस संस्थाएं काफी महत्व रखती हैं। स्थानीय बैंकों की फीस ऊंची होती है इसलिए ये इन उद्यमियों के लिए काम के नहीं हैं। कई लोगों के पास इन बैंकों में खाता खोलने के लिए जरूरी दस्तावेज़ (पहचानपत्र या आय प्रमाणपत्र) नहीं होते। कई लोग इतने साक्षर नहीं होते कि आवेदनपत्र आदि भर सकें।
सीईओ गोविंद सिंह कहते हैं कि उत्कर्ष का मूल जनादेश समुदायों को मजबूत करना और महिलाओं को सशक्त बनाना है।
ऐसे ही लोगों को ध्यान में रखते हुए श्री सिंह बताते हैं कि उत्कर्ष का लक्ष्य समुदायों तथा इरावती जैसी महिलाओं को सशक्त बनाना है। इरावती कर्ज़ लेने वाली 30 महिलाओं के समूह में शामिल हैं। यह समूह अपनी हर सदस्य द्वारा कर्ज़ भुगतान की गारंटी लेता है। यहां कार, मकान आदि को जमानत के तौर पर नहीं रखा जाता, संबंध ही जमानत होता है।
हर दो सप्ताह पर यह समूह कारोबार या कर्ज़ भुगतान के बारे में विचार करने के लिए सबेरे-सबेरे उत्कर्ष के क्रेडिट अफसर के साथ बैठक करता है। सामूहिक कर्ज़ तथा सामूहिक देनदारी की यह प्रक्रिया उत्कर्ष से कर्ज़ लेने वाली लाखों महिलाओं के लिए अच्छी तरह चल रही है।

कई कर्जदार अपने समूह के सदस्यों से अच्छे संबंध बना लेते हैं। पड़ोस के बहुटेरा गांव में अपनी दुकान पर मिर्ची तलती हुईं श्रीमती प्रमिला देवी कहती हैं, “मुझे अब एक नेटवर्क का सहारा मिल गया है, जो परिवार के बाहर पहले कभी उपलब्ध नहीं था । एक तरह का बहनापा हो गया है। मुझे पता है कि अब मैं कोई मुश्किल में पड़ूँगी तो कोई-न-कोई मेरी मदद करेगा”। वे न केवल चाय की दुकान खोलने में सफल हुई हैं बल्कि परिवार की मासिक आमदनी उन्होंने दोगुनी कर ली है। सेंटर की बैठकों में भाग लेने से उनमें स्वाभिमान भी जागा है। उनका यह समूह उन्हें ‘प्रधान’ कहने लगा है।
उत्कर्ष अपने कर्जदारों की दूसरी तरह से भी अच्छी मदद करता है। हड़हुआ समेत दूसरी जगहों पर माइक्रो-बैंकिंग शाखाओं में केवल महिलाओं को काम पर रखने के कारण नई ग्राहकों के लिए भी रास्ता खुला है। उत्कर्ष की हड़हुआ शाखा की मैनेजर श्रीमती सभ्या यादव कहती हैं, "अपनी समस्याओं के बारे में बात करने में उन्हें सहजता महसूस होती है।" अपने कस्बे बिल्लिया कि वे पहली महिला हैं जो शहर से बाहर निकलकर दूसरी जगह नौकरी कर रही हैं। "अगर पुरुष शामिल होते तो शायद वे हिचकतीं या शाखा में जाती ही नहीं"।
वित्तीय समावेश की नई परिभाषा
उत्कर्ष की सफलता में इस बात का भी योगदान है कि उसने कर्ज़ देने के साथ-साथ दूसरी पहल भी की, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा। उत्कर्ष के परमार्थ फ़ाउंडेशन को कंपनी के मुनाफे का 2 फीसदी हिस्सा मिलता है। यह फ़ाउंडेशन ऐसी कई सेवाएं देता है ताकि महिलाएं कर्ज़ में मिले पैसे का पूरा लाभ उठा सकें। इसके लिए उन्हें वित्तीय रूप से जानकार बनाने के लिए क्लास चलाई जाती है और व्यावसायिक ट्रेनिंग दी जाती है।
बचत के विषय पर पुरानापुल गांव में क्लास लेने जा रहे, उत्कर्ष वेलफेयर फ़ाउंडेशन के प्रमुख श्री उमानाथ मिश्र कहते हैं, "वित्तीय समावेश की परिभाषा बदल रही है। आपका बचत खाता है लेकिन अगर आप टेक्नोलोजी या कांसेप्ट को नहीं समझते तो आप अभी भी व्यवस्था से बाहर हैं। हम उन्हें बताते हैं कि निवेश कब, कैसे और किन शर्तों पर करना है।"
साढ़े चार लाख महिलाओं की सेवा करने वाला यह फ़ाउंडेशन उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए समीप के बाज़ार से जुड़ने में भी मदद करता है। यह सामाजिक सक्रियता का भी एक मंच है। यही वजह है कि भारत के निर्धनतम लोगों को-- जिनमें से 19 करोड़ के पास अपना बैंक खाता नहीं है-- कर्ज़ उपलब्ध कराना उत्कर्ष की प्राथमिकता रहेगी।
उत्कर्ष की ग्राहक, माल्ती देवी, बेलवा गांव में पड़ोसियों और उनके उधार समूह के सदस्यों से बात करती हुईं।
अधिक प्रभावी बनने के लिए कंपनी ने 2017 में खुद को माइक्रो-फाइनांस संस्था से एक छोटे वित्त बैंक में बदल डाला। अब यह लघु से लेकर मझोले आकार की कंपनियों को, जिन्हें 'गुमनाम मझोली' कहा जा सकता है, बेहद जरूरी फ़ंड उपलब्ध कराता है। ये रोजगार और आर्थिक विकास की महत्वपूर्ण स्रोत हैं। अनुमान है कि इन 80 लाख कंपनियों की वित्त तक पहुंच नहीं है, जिसके कारण ये प्रगति नहीं कर पातीं। इस कमी को पूरा करने के लिए 230 अरब डॉलर की जरूरत पड़ेगी।
उत्कर्ष ने जो बदलाव किया है उसके कारण वह माइक्रो-फाइनांस के ग्राहकों से डिपॉजिट स्वीकार कर सकता है। इस पहल के कारण ग्राहकों को बचत के लिए प्रेरित किया जा सकता है। यह नीची ब्याजदर पर कर्ज़ दे सकता है। जबसे उत्कर्ष ने इस सेक्टर में काम शुरू किया है, इसकी 50 से ज्यादा सामान्य बैंकिंग शाखाओं ने 15000 ऐसी कंपनियों को 500 से लेकर 6000 डॉलर तक का कर्ज़ दिया है, जिन्होंने पहली बार कर्ज़ लिया।
उत्कर्ष प्रगति कर रहा है, और हड़हुआ में धान के खेतों पर नज़र दौड़ाते हुए श्री सिंह कहते हैं, "माइक्रो-फाइनांस पर हम ज़ोर देते रहेंगे क्योंकि हम इसे अच्छी तरह जानते हैं और लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।"
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अक्टूबर 2018 में प्रकाशित।